Electoral Bonds (इलेक्टोरल बांड्स) पर बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अंबेडकर के विचार
बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अंबेडकर की विचारधारा, जो लोकतंत्र, पारदर्शिता, जवाबदेही और सामाजिक न्याय पर केंद्रित थी, यह स्पष्ट संकेत देती है कि वे आज के चुनावी बांडों के मुद्दे पर कठोर आलोचना करते। डॉ. अंबेडकर के समय में चुनावी बांड नहीं थे, फिर भी उनके लेखन और भाषणों से यह स्पष्ट होता है कि वे किसी भी ऐसी प्रणाली के खिलाफ थे जो राजनीतिक वित्तपोषण की पारदर्शिता को कमजोर करती हो।
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि लोकतंत्र में सभी नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए और यह केवल तभी संभव है जब राजनीतिक वित्तपोषण पूर्ण रूप से पारदर्शी हो। वे चेतावनी देते हैं कि चुनावी बांड जैसी प्रणालियाँ, जो दानदाताओं की पहचान को गोपनीय रखती हैं, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर सकती हैं और सत्ता में बैठे लोगों को और भी शक्तिशाली बना सकती हैं।
डॉ. अंबेडकर की सामाजिक न्याय की विचारधारा से यह भी स्पष्ट होता है कि वे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की कमी को समाज में विषमता बढ़ाने वाला मानते। उनका मानना था कि समाज के हर वर्ग के लोगों को राजनीति में बराबरी का मौका मिलना चाहिए, जो केवल तब संभव है जब वित्तपोषण में पूरी तरह से पारदर्शिता हो।
इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि डॉ. अंबेडकर चुनावी बांडों के मुद्दे पर केवल आलोचना ही नहीं करते, बल्कि वे इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा मानते। उनके विचारों को देखते हुए, यह स्पष्ट होता है कि वे पारदर्शी राजनीतिक वित्तपोषण की व्यवस्था की मांग करते, जो नागरिकों को यह जानने का अधिकार देती कि उनके नेताओं को कौन वित्त पोषित कर रहा है। ऐसी प्रणाली से ही सच्चे लोकतंत्र की स्थापना हो सकती है जो सभी के लिए काम करे, न कि केवल शक्तिशाली और धनी वर्ग के लिए।