परिशिष्ट X – लॉर्ड वैवेल और श्री गांधी के बीच पत्राचार, 1944 – कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के साथ क्या किया – वन वीक सीरीज – बाबासाहेब डॉ.बी.आर.आंबेडकर

परिशिष्ट X – लॉर्ड वैवेल और श्री गांधी के बीच पत्राचार, 1944

 

परिचय :डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की लेखन और भाषणों की वॉल्यूम 09 में परिशिष्ट X, 1944 में भारत के तत्कालीन वायसराय, लॉर्ड वैवेल और महात्मा गांधी के बीच हुए पत्राचार का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है। यह पत्रों की शृंखला एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक नाजुक चरण के दौरान राजनीतिक वार्तालापों और स्थितियों को प्रकाश में लाता है।

सारांश: पत्राचार 15 जुलाई, 1944 को गांधीजी के वायसराय को लिखे गए पत्र से शुरू होता है, जिसमें उन्होंने न्यूज क्रॉनिकल के श्री गेल्डर को दिए गए एक साक्षात्कार के प्रीमेच्योर रूप में प्रकाशित होने पर खेद व्यक्त किया। गांधीजी का पत्र उनकी स्थिति को स्पष्ट करने और 17 जून, 1944 को लिखे गए पत्र में किए गए अनुरोधों को दोहराने का प्रयास करता है। लॉर्ड वैवेल 22 जुलाई, 1944 को जवाब देते हैं, गांधीजी के पत्र को स्वीकार करते हुए और एक निश्चित और संरचनात्मक नीति प्रस्ताव के लिए कहते हैं।

गांधीजी 27 जुलाई, 1944 को एक ठोस प्रस्ताव के साथ जवाब देते हैं, जिसमें उन्होंने कार्यकारी समिति के घोषणापत्र को वापस लेने की पेशकश की जिसमें अगस्त 1942 में देखी गई सामूहिक नागरिक अवज्ञा को वापस लिया जाएगा और युद्ध प्रयास में सहयोग किया जाएगा, शर्त पर कि तत्काल भारतीय स्वतंत्रता की घोषणा और एक राष्ट्रीय सरकार का गठन किया जाए। वह यह भी सुझाव देते हैं कि एक समझौते के लिए पत्राचार के बजाय चर्चा अधिक उपयुक्त होगी।

लॉर्ड वैवेल का जवाब 15 अगस्त, 1944 को आता है, जिसमें ब्रिटिश सरकार की स्थिति को रेखांकित किया गया है, जो गांधीजी के प्रस्तावों को चर्चा के आधार के रूप में अस्वीकार्य पाता है। वैवेल ब्रिटिश सरकार द्वारा किसी भी समझौते के लिए निर्धारित शर्तों को दोहराते हैं, जिसमें भारत के मुख्य तत्वों द्वारा सहमत संविधान की आवश्यकता और संधि व्यवस्थाओं की बातचीत शामिल है। वह जोर देते हैं कि ब्रिटिश सरकार और गवर्नर-जनरल को युद्ध के अंत तक और एक नए संविधान के कामकाज तक पूरा नियंत्रण बनाए रखना होगा।

मुख्य बिंदु

  1. पत्राचार भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के एक निर्णायक क्षण को कैप्चर करता है, जो भारतीय नेताओं और ब्रिटिश सरकार के बीच वार्तालाप प्रयासों को हाइलाइट करता है।
  2. गांधीजी के प्रस्ताव स्वतंत्रता की ओर एक ठोस कदम और एक राष्ट्रीय सरकार के लिए सामूहिक नागरिक अवज्ञा अभियान पर समझौता करने की तत्परता को दर्शाते हैं।
  3. लॉर्ड वैवेल के जवाब ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण बनाए रखने और किसी भी संवैधानिक परिवर्तन या स्वतंत्रता घोषणाओं के लिए पूर्व शर्तों पर ब्रिटिश सरकार के रुख को प्रतिबिंबित करते हैं।

पत्र द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में राजनीतिक स्थिति की जटिलताओं को उजागर करते हैं, जिसमें विभिन्न हितों को संतुलित करने की चुनौती और आगे बढ़ने के लिए ब्रिटिश सरकार की शर्तों शामिल हैं।

निष्कर्ष: 1944 में लॉर्ड वैवेल और महात्मा गांधी के बीच पत्राचार भारत की स्वतंत्रता के लिए वार्तालापों में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। जहां गांधीजी की स्वतंत्रता के बदले कांग्रेस के रुख में संशोधन करने की इच्छा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में रणनीतिक परिवर्तनों को उजागर करती है, वहीं ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रियाएं उपनिवेशी परिप्रेक्ष्य से चुनौतियों और शर्तों को रेखांकित करती हैं। ये पत्र न केवल शामिल नेताओं की राजनीतिक कुशलता के लिए एक प्रमाण हैं, बल्कि उपनिवेशी सत्ता संबंधों और भारतीय स्वायत्तता की खोज की जटिल गतिकी को भी दर्शाते हैं।