अध्याय 3:एक डूबता पुरोहितत्व – प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति – वन वीक सीरीज – बाबासाहेब डॉ.बी.आर.बाबासाहेब आंबेडकर

अध्याय 3:एक डूबता पुरोहितत्व

सारांश:अध्याय 3 ब्राह्मण पुरोहितत्व की सत्ता के ह्रास और इस घटना के योगदान देने वाले कारकों की गहराई में जाता है। इसमें ब्राह्मणवाद के भीतरी संघर्षों और उभरते धार्मिक आंदोलनों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का पता लगाया गया है।

मुख्य बिंदु:

  1. पुरोहित सत्ता का ह्रास:अध्याय इस चर्चा से खुलता है कि कैसे विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक कारकों के कारण ब्राह्मण पुरोहितत्व की सत्ता कमजोर पड़ने लगी।
  2. आंतरिक संघर्ष:इसमें ब्राह्मणवाद के भीतरी विभाजनों का अध्ययन किया गया है, जिसमें अनुष्ठानिक प्रथाओं और पवित्र पाठों की व्याख्याओं पर विवाद शामिल हैं।
  3. सुधार आंदोलनों का उदय: बौद्ध और जैन धर्म के रूप में प्रमुख सुधार आंदोलनों का उदय, जो ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती देते हैं, को उजागर किया गया है।
  4. अनुकूलन और अस्तित्व:खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने और अस्तित्व बनाए रखने के लिए ब्राह्मण पुरोहितत्व द्वारा अपनाई गई रणनीतियों, जिसमें प्रथाओं में सुधार और नए दार्शनिक विचारों को अपनाना शामिल है, का विश्लेषण किया गया है।

निष्कर्ष:इस अध्याय में घटती सत्ता और बाहरी चुनौतियों के सामने ब्राह्मणवादी व्यवस्था की लचीलापन को उजागर किया गया है। इसमें ब्राह्मणवाद की अनुकूलन क्षमता पर प्रकाश डाला गया है, जिसने इसे प्रतिद्वंद्वी धार्मिक आंदोलनों से तत्वों को अवशोषित और एकीकृत करने में सक्षम बनाया, जिससे इसका अस्तित्व और भारतीय समाज में इसके निरंतर प्रभाव को सुनिश्चित किया गया।