हिंदू धर्म का दर्शन – वन वीक सीरीज – बाबासाहेब डॉ.बी.आर.आंबेडकर
Index
अध्याय | पेज नंबर |
अध्याय 1: हिंदू धर्म का दर्शन | 3 |
अध्याय 2: क्या हिंदू धर्म समानता को मान्यता देता है? | 4 |
अध्याय 3: इस मामले में हिंदू धर्म का क्या स्थान है? | 5 |
अध्याय 4: क्या हिंदू धर्म बंधुत्व को पहचानता है? | 6 |
अध्याय 5: ऐसे धर्म का मनुष्य के लिए क्या मूल्य है? | 7 |
अध्याय 6: हिंदू नैतिकता किस स्तर पर खड़ी है? | 8 |
अध्याय 7: उपनिषदों के इस दर्शन का क्या उपयोग है? | 9 |
हिंदू धर्म का दर्शन
प्रस्तावना
यह वन वीक सीरीज भारतीय संविधान के मुख्य रचनाकार बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर द्वारा लिखित पुस्तक – “हिंदू धर्म का दर्शन” के महत्वपूर्ण बिंदुओं को संक्षिप्त नोट्स रूप में प्रदान करती है |
हिंदू धर्म के दर्शन पर डॉ. बी. आर. अंबेडकर की यह कृति न केवल धार्मिक आस्थाओं और प्रथाओं की पड़ताल करती है, बल्कि समाजिक न्याय और अधिकारों की बात भी करती है। अंबेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान का जनक माना जाता है, ने अपने जीवन को समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज उठाने में समर्पित किया। इस पुस्तक के माध्यम से, वे हिंदू धर्म में व्याप्त विसंगतियों और विरोधाभासों की ओर इशारा करते हैं, जो अक्सर सामाजिक असमानता और अन्याय को जन्म देती हैं।
यह पुस्तक विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जो भारतीय समाज की जटिलताओं और विविधताओं को समझना चाहते हैं। डॉ. अंबेडकर का विश्लेषण हमें उन मूल्यों की ओर ले जाता है जो न केवल हिंदू धर्म को, बल्कि समग्र रूप से भारतीय समाज को आकार देते हैं।
पुस्तक की महत्वपूर्णता इस तथ्य में निहित है कि यह हमें उन परंपराओं और मान्यताओं पर पुनर्विचार करने का आह्वान करती है, जो समय के साथ अविवादित रूप से स्वीकार कर ली गई हैं। अंबेडकर का मानना था कि धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं की समीक्षा और सुधार के माध्यम से ही सच्चे अर्थों में एक समतामूलक समाज की स्थापना संभव है।
“हिंदू धर्म का दर्शन” एक ऐसी कृति है जो न केवल धार्मिक दर्शन की गहराइयों में जाती है, बल्कि समाज में व्याप्त विषमताओं और विसंगतियों के खिलाफ एक मजबूत आवाज भी उठाती है। यह पुस्तक हमें चुनौती देती है कि हम अपनी मान्यताओं और परंपराओं पर पुनर्विचार करें और एक ऐसे समाज की ओर अग्रसर हों जो सभी के लिए न्याय और समानता पर आधारित हो।
- संदीप काला बौद्ध