प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति
- बाबासाहेब डॉ. बी.आर. आंबेडकर
विषय–सूची
क्रमांक | अध्याय | पेजनंबर |
1. | प्राचीन भारत की उत्खनन पर | 3 |
2. | प्राचीन शासन—आर्य समाज की स्थिति | 4 |
3. | डूबता हुआ पुजारी वर्ग | 5 |
4. | सुधारक और उनका भाग्य | 6 |
5. | बौद्ध धर्म का पतन और अवसान | 7 |
6. | ब्राह्मणवाद का साहित्य | 8 |
7. | ब्राह्मणवाद की विजय | 9 |
8. | घर का नैतिकता—मनु स्मृति या प्रतिक्रांति का सुसमाचार | 10 |
9. | प्रतिक्रांति का दार्शनिक बचाव (कृष्ण और उनका गीता) | 11 |
10. | विराट पर्व और उद्योग पर्व का विश्लेषण | 12 |
11. | ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय | 13 |
12. | शूद्र और प्रतिक्रांति | 14 |
13. | महिलाएँ और प्रतिक्रांति | 15 |
प्रस्तावना
यह वन वीक सीरीजभारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकरद्वारा लिखित पुस्तक – “प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति” के महत्वपूर्ण बिंदुओं को संक्षिप्त नोट्स रूप में प्रदान करती है |
इस पुस्तक में बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर विश्लेषण करते है की ब्राह्मणवाद ने किस प्रकार से बौद्ध धर्म के प्रसार और प्रभाव का सामरिक रूप से मुकाबला किया, जिससे बौद्ध धर्म का अंततः भारत में पतन हुआ। यह विश्लेषण प्राचीन भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं में गहराई से जाता है, जिसमें इन क्रांतियों और प्रतिक्रांतियों के कारण होने वाले सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक परिवर्तन शामिल हैं। सामग्री सुझाव देती है कि बौद्ध धर्म का उदय ब्राह्मणवादी व्यवस्था के स्थापित नियमों और विशेषाधिकारों को चुनौती देता है, जिससे ब्राह्मणवादी प्रभुत्व को पुनः स्थापित करने के लिए एक जानबूझकर, संगठित प्रतिक्रांति की गयी ।
– संदीप काला बौद्ध