अध्याय 6: महात्मा गांधी के साथ वाद-विवाद
अवलोकन:
इस अध्याय में डॉ. बी.आर. बाबासाहेब आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच जाति और अस्पृश्यता के मुद्दे पर हुए ऐतिहासिक वाद-विवाद को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। यह वाद-विवाद न केवल दो महान विचारकों के बीच की वैचारिक टकराव को दर्शाता है, बल्कि भारतीय समाज में जाति व्यवस्था के उन्मूलन की दिशा में उठाए गए कदमों पर भी प्रकाश डालता है।
मुख्य बिंदु:
- प्रारंभिक असहमति: वाद-विवाद की शुरुआत बाबासाहेब आंबेडकर के “जाति के विनाश” पर लिखे गए लेख से होती है, जिसमें उन्होंने हिन्दू समाज और जाति प्रणाली की कठोर आलोचना की थी। गांधी का जवाब, जो वर्ण पर आधारित समाधान को बढ़ावा देता है, बाबासाहेब आंबेडकर की राय से मौलिक रूप से भिन्न था।
- दार्शनिक मतभेद:बाबासाहेब आंबेडकर ने जाति प्रणाली के निहित अन्यायों पर प्रकाश डाला और इसे समाप्त करने की मांग की, जबकि गांधी ने हिन्दू धर्म के भीतर सुधारों के माध्यम से उसे सुधारने की वकालत की।
- पूना पैक्ट: वाद-विवाद का एक महत्वपूर्ण परिणाम पूना पैक्ट था, जो अलग-अलग निर्वाचन मंडलों के बजाय दलितों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ाने पर समझौता करता है।
- गांधी का उत्तर: गांधी ने बाबासाहेब आंबेडकर के लेख का उत्तर दिया, जिसमें उन्होंने जाति और वर्ण प्रणाली के अपने विचारों को स्पष्ट किया और बाबासाहेब आंबेडकर के आलोचनात्मक दृष्टिकोण को चुनौती दी।
- विचार-विमर्श का महत्व: यह वाद-विवाद न केवल दो महान व्यक्तित्वों के बीच के मतभेदों को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे गहरे सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श से समाज में जागरूकता और परिवर्तन की आवश्यकता को उजागर किया जा सकता है।
महत्व:
बाबासाहेब आंबेडकर और गांधी के बीच वाद-विवाद भारतीय समाज में जाति और अस्पृश्यता के मुद्दों पर चल रही व्यापक बहसों का एक अभिन्न हिस्सा है। इसने न केवल इन मुद्दों पर व्यापक चर्चा को प्रोत्साहित किया, बल्कि भविष्य के सुधारों के लिए एक नींव भी प्रदान की।