स्पर्शयोग्य बनाम अस्पर्श्य

अध्याय – 4

स्पर्शयोग्य बनाम अस्पर्श्य

यह अध्याय भारतीय समाज में जाति भेदभाव और अस्पर्श्यों के विभाजन की जटिलताओं की गहराई में जाने का एक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। यहाँ इस अध्याय का संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण है:

सारांश:

डॉ. आंबेडकर ने भारत में स्पर्श्यों और अस्पर्श्यों के बीच के स्पष्ट विभाजन को जन्म देने वाले स्थापित सामाजिक प्रथाओं की जांच की। उन्होंने इस तरह के विभाजन के लिए दी गई ऐतिहासिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक औचित्य की खोज की और समाज पर उनके प्रभाव और वैधता का मूल्यांकन किया। आंबेडकर का तर्क है कि ये विभाजन केवल निराधार नहीं हैं, बल्कि हानिकारक भी हैं, असमानता और अन्याय को बढ़ावा देते हैं।

मुख्य बिंदु:

  1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: अध्याय जाति विभाजन के ऐतिहासिक संदर्भ को रेखांकित करता है, इसकी उत्पत्ति और समय के साथ इसके विकास का अनुसरण करता है।
  2. सामाजिक प्रथाएं और ताबू: इसमें विभिन्न प्रथाओं की चर्चा की गई है जिसने विभाजन को मजबूत किया, जैसे कि पानी या भोजन साझा करने पर प्रतिबंध, और विभिन्न जातियों के बीच विवाह और सामाजिक संपर्क पर प्रतिबंध।
  3. धार्मिक स्वीकृति: आंबेडकर ने खोजा कि कैसे धर्म ने जाति भेदभाव को वैध और बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, कुछ ग्रंथों और सिद्धांतों की व्याख्या सामाजिक पदानुक्रम को सही ठहराने के लिए की गई।
  4. आर्थिक और राजनीतिक कारक: अस्पर्श्यों के आर्थिक शोषण और राजनीतिक हाशियाकरण को उजागर किया गया है, दिखाता है कि कैसे जाति भेदभाव उच्च जातियों के हितों की सेवा करता है।
  5. अस्पर्श्यों पर प्रभाव: अध्याय अस्पर्श्यों पर इस तरह के विभाजन के हानिकारक प्रभावों की चर्चा करता है, जिसमें सामाजिक बहिष्कार, गरीबी, और शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक पहुँच में कमी शामिल है।
  6. आंबेडकर की आलोचना: डॉ. आंबेडकर ने जाति भेदभाव के औचित्य का मूल्यांकन किया और इस तरह के अन्यायपूर्ण सामाजिक ढांचों को ध्वस्त करने के लिए तर्क दिया। उन्होंने समानता, सामाजिक न्याय, और अस्पर्श्यों के उत्थान की वकालत की।

निष्कर्ष:

आंबेडकर ने निष्कर्ष निकाला कि स्पर्श्यों और अस्पर्श्यों के बीच का विभाजन एक सामाजिक संरचना है जिसका कोई नैतिक या तार्किक आधार नहीं है। उन्होंने समानता और न्याय पर आधारित समाज स्थापित करने के लिए जाति भेदभाव को मिटाने के लिए एकजुट प्रयास की मांग की। उनका काम सामाजिक असमानता की एक शक्तिशाली आलोचना बना हुआ है और भारत और उससे आगे के जाति भेदभाव के खिलाफ आंदोलनों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।