अध्याय 7: एक जातिहीन समाज के लिए दृष्टिकोण – वन वीक सीरीज – जाति का विनाश – बाबासाहेब डॉ.बी.आर.बाबासाहेब आंबेडकर

अध्याय 7: एक जातिहीन समाज के लिए दृष्टिकोण – वन वीक सीरीज – जाति का विनाश – बाबासाहेब डॉ.बी.आर.बाबासाहेब आंबेडकर

अवलोकन:

डॉ. बी.आर. बाबासाहेब आंबेडकर एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जो जाति प्रणाली से मुक्त हो और जिसका आधार स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारा हो। उनकी दृष्टि में एक आदर्श समाज वह है जो गतिशील हो, जिसमें सामाजिक परिवर्तनों को एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक पहुँचाने के लिए अनेक मार्ग हों, और जिसमें विभिन्न समूहों के बीच सचेत संवाद और साझाकरण हो।

 मुख्य बिंदु:

  1. स्वतंत्रता की महत्ता: बाबासाहेब आंबेडकर के अनुसार, एक आदर्श समाज में सभी को अपने जीवन और अंगों की स्वतंत्रता होनी चाहिए, साथ ही साथ उचित जीवन यापन के लिए आवश्यक संसाधनों तक पहुँच की स्वतंत्रता भी होनी चाहिए।
  2. समानता का सिद्धांत: उनका मानना है कि समाज में सभी को समान माना जाना चाहिए, बिना किसी जाति या वर्ग के भेदभाव के।
  3. भाईचारे की अवधारणा: बाबासाहेब आंबेडकर भाईचारे को लोकतंत्र का एक अन्य नाम मानते हैं, जो न केवल एक शासन प्रणाली है बल्कि संयुक्त संवादित अनुभव का एक तरीका भी है।
  4. लोकतंत्र की भूमिका: उनके अनुसार, लोकतंत्र में सम्मान और परस्पर सम्मान की भावना होती है, जो सभी मनुष्यों के प्रति आदर की भावना पर आधारित होती है।
  5. व्यावसायिक स्वतंत्रता: बाबासाहेब आंबेडकर के अनुसार, हर व्यक्ति को अपने व्यवसाय का चयन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, बिना जन्म के आधार पर निर्धारित कार्यों के बोझ तले दबे बिना।

 महत्व:

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की इस दृष्टि से पता चलता है कि वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहाँ सभी व्यक्तियों को समान माना जाता है, उनकी स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है, और जहाँ भाईचारे की भावना प्रबल हो। इस दृष्टि से जाति प्रणाली के विनाश की दिशा में एक स्पष्ट मार्ग प्रदर्शित होता है, जो समाज को अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक कदम है।